सीमा संवाददाता जीत बहादुर चौधरी की रिपोर्ट
31/08/2025
काठमाण्डौ,नेपाल — प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने शनिवार को चीन के तियानजिन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ द्विपक्षीय बैठक के दौरान लिपुलेख मुद्दा उठाया।
ओली ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन 2025 के संदर्भ में आयोजित बैठक के दौरान लिपुलेख मुद्दा उठाया।
ओली ने 15 अगस्त को भारत और चीन के बीच हुए व्यापार समझौते पर आपत्ति जताई थी, जो नेपाली क्षेत्र लिपुलेख से होकर गुज़रेगा। नेपाल द्वारा लिपुलेख मुद्दा उठाए जाने से भारतीय मीडिया में हंगामा मच गया है।
भारतीय मीडिया ने ओली के इस कदम को नेपाल के ‘राष्ट्रवादी रुख’ के रूप में पेश किया है। लेकिन साथ ही, उन्होंने चीन की चुप्पी को भी विशेष महत्व दिया है। हालाँकि नेपाल ने लिपुलेख मुद्दे को विशेष रूप से उठाया है, लेकिन भारतीय मीडिया ने इस मुद्दे पर नेपाल का पक्ष न लेने को चीन द्वारा प्राथमिकता दी है।
*प्रधानमंत्री ओली ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ अपनी बैठक में लिपुलेख का मुद्दा उठाया*
भारतीय मीडिया ने इस मुद्दे पर नेपाल के दावे, चीन की चुप्पी और द्विपक्षीय संबंधों के पहलुओं पर केंद्रित सामग्री प्रकाशित की है।
यह सामग्री बीजिंग स्थित नेपाली दूतावास के बयान, विदेश सचिव अमृत बहादुर राई के बयान और चीन के आधिकारिक ‘बयान’ के आधार पर प्रकाशित की गई है।
कुल मिलाकर, भारतीय मीडिया ने इस बैठक को नेपाल के ‘कड़े रुख’ के रूप में पेश किया है, लेकिन इसे ‘रणनीतिक चुप्पी’ के रूप में व्याख्यायित किया है, यह कहते हुए कि लिपुलेख मुद्दे पर चीन की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।
अधिकांश मीडिया संस्थानों ने बताया है कि ओली ने 1816 की सुगौली संधि का हवाला देते हुए लिपुलेख को नेपाल का ‘अभिन्न अंग’ बताया। इसी तरह, ओली का यह बयान कि 15 अगस्त का समझौता नेपाल की सहमति के बिना किया गया था और यह नेपाल की संप्रभुता के लिए एक चुनौती है, भी खबरों में शामिल किया गया है।
भारत 24 लाइव में बताया गया है कि ओली ने ‘दो शब्द’ कहकर लिपुलेख को नेपाल का हिस्सा बताया और चीन से समझौते पर पुनर्विचार करने की अपील की।
इसी तरह, अग्निवाणी में भी ओली ने लिपुलेख को नेपाल का अभिन्न अंग बताया और भारत-चीन समझौते को ‘संप्रभुता के लिए चुनौती’ बताया।
*(नवभारत टाइम्स, न्यूज़18, जागरण, पीटीआई, ईटीवी भारत, ज़ी न्यूज़ और द ट्रिब्यून जैसे मीडिया संस्थानों ने यह कहने के इरादे से खबरें प्रकाशित की हैं कि ओली ने 15 अगस्त के समझौते को लेकर चीन के साथ ‘बातचीत बंद’ कर दी है।)*
भारतीय समाचार एजेंसी पीटीआई ने खबर दी है कि नेपाल लिपुलेख को अपना क्षेत्र बताता है, लेकिन भारत ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि यह ऐतिहासिक या साक्ष्य-आधारित तथ्यों पर आधारित नहीं है।
पीटीआई ने लिखा, “नेपाल लिपुलेख को अपना क्षेत्र बताता है, जिसे भारत ने स्पष्ट रूप से खारिज करते हुए कहा है कि यह ‘न तो वैध है और न ही ऐतिहासिक तथ्यों और साक्ष्यों पर आधारित है।’
*चीन की चुप्पी पर ज़ोर*
लिपुलेख मुद्दे पर आवाज़ उठाने के बावजूद, कुछ मीडिया संस्थानों ने ओली को ‘निर्दोष’ तक कहा है क्योंकि चीन ने इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है। ज़्यादातर मीडिया संस्थानों ने कहा है कि ओली के भाषण का कोई ख़ास मतलब नहीं है क्योंकि चीन के आधिकारिक बयान में लिपुलेख मुद्दे का कोई ज़िक्र नहीं है। भारतीय मीडिया ने ओली के रुख़ पर चीन की चुप्पी को ‘रणनीतिक चुप्पी’ बताया है।
भारतीय मीडिया संस्थानों ने लिखा है कि चीन ने जानबूझकर लिपुलेख के बारे में कुछ नहीं कहा है। चीन ने लिपुलेख का ज़िक्र तक न करने के अपने फ़ैसले को ‘सोची-समझी कूटनीतिक रणनीति’ बताया है। ज़्यादातर ख़बरों में यह विश्लेषण किया गया है कि चीन भारत जैसे बड़े पड़ोसी के साथ विवाद में नहीं पड़ना चाहता।







