उप सम्पादक जीत बहादुर चौधरी की रिपोर्ट
15/11/2025
काठमाण्डौ,नेपाल – भारत के बिहार राज्य में 2025 के विधानसभा चुनाव के नतीजों ने सभी को चौंका दिया है। 20 साल से ज़्यादा समय से सत्ता पर काबिज़ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने कुल 243 सीटों में से 202 सीटें जीतकर ऐतिहासिक सफलता हासिल की है।
इस नतीजे ने विपक्षी महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव के चुनाव प्रचार अभियान को धराशायी कर दिया है।
इस चुनाव का सबसे बड़ा और दिलचस्प आँकड़ा महिला मतदाताओं की भागीदारी है। इस चुनाव में 71.6% महिलाओं ने मतदान किया, जो पुरुष मतदाताओं (62.8%) से लगभग 9 प्रतिशत अंक ज़्यादा है। बिहार के चुनावी इतिहास में महिलाओं की यह सबसे बड़ी भागीदारी है।
*कैसे हुआ काम?*:
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 20 साल पहले छात्राओं को दो साइकिल (साइकिल) देने की योजना के ज़रिए महिलाओं को अपना मुख्य समर्थक बनाया था। चुनाव से पहले, उनकी सरकार ने सवा करोड़ से ज़्यादा महिलाओं के खातों में सीधे 10,000 रुपये ट्रांसफर किए थे। यह राशि मुख्यमंत्री रोज़गार योजना के तहत वितरित की गई थी।
इससे न केवल महिलाओं को आर्थिक संबल मिला, बल्कि सरकार के प्रति कृतज्ञता का भाव भी जगा। शराबबंदी ने भी महिलाओं का विश्वास बनाए रखने में मदद की। उनके लंबे शासन के बावजूद, लोगों ने नीतीश कुमार से नाराज़गी नहीं जताई, बल्कि आभार व्यक्त किया।
इस जीत के साथ, नीतीश कुमार दसवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बनेंगे। वह पश्चिम बंगाल के ज्योति बसु और ओडिशा के नवीन पटनायक जैसे नेताओं की सूची में शामिल हो गए हैं, जिन्होंने 20 से ज़्यादा वर्षों तक मुख्यमंत्रियों के रूप में कार्य किया है।
उन्होंने क्या किया? ‘सड़क, बिजली और कानून-व्यवस्था’ में उनके सुधारों ने उन्हें ‘सुशासन बाबू’ का उपनाम दिलाया। लोगों ने एक सक्षम और अनुभवी नेता पर भरोसा किया, जिससे युवा नेता तेजस्वी यादव का आकर्षण कम हो गया। नीतीश कुमार ने यह योजना न केवल अपनी छोटी कुर्मी जाति के आधार पर लाई, बल्कि अति पिछड़े वर्गों और महादलितों को भी लक्ष्य बनाकर लाई।
इस चुनाव में एनडीए को 46.52% वोट मिले, जबकि महागठबंधन को 37.64% वोट मिले। राजद ने अपने पारंपरिक यादव-मुस्लिम (एमवाई) वोट बैंक को मज़बूत करने की ही कोशिश की। हालाँकि, नीतीश कुमार ने विकास योजनाओं के ज़रिए गैर-यादव पिछड़े वर्गों और दलितों को लुभाया।
महागठबंधन की मुख्य कमज़ोरी इसका लंबा इतिहास और चुनावी क्रियान्वयन का अभाव था। ‘जंगल राज’ का डर: 1990 के दशक में अराजकता और अपराध के डर ने कई मतदाताओं को राजद को वोट देने से रोका। तेजस्वी द्वारा 1.25 करोड़ सरकारी नौकरियां देने जैसे बड़े-बड़े वादे करने के बावजूद, लोगों ने नीतीश कुमार पर ज़्यादा भरोसा किया क्योंकि उन्होंने पहले ही उनके खातों में पैसे डाल दिए थे।
गठबंधन की एक प्रमुख पार्टी, कांग्रेस, 61 सीटों पर चुनाव लड़ी, जिनमें से केवल 6 पर ही जीत हासिल कर सकी, जिससे गठबंधन का समग्र प्रदर्शन कमज़ोर हुआ।
तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन की मुस्लिम समर्थक छवि ने भी बिहार चुनावों में उसकी हार में अहम भूमिका निभाई। हालाँकि, सीमावर्ती क्षेत्र में भी, जहाँ मुस्लिम आबादी ज़्यादा है, महागठबंधन को भारी हार का सामना करना पड़ा।
हार का एक मुख्य कारण तेजस्वी यादव द्वारा चुनाव के दौरान की गई एक विवादास्पद घोषणा थी। उन्होंने कहा था कि अगर वे मुख्यमंत्री बने, तो “वक्फ अधिनियम को रद्द कर देंगे”। इस घोषणा में वामपंथी और कांग्रेस ने भी उनका समर्थन किया।
भाजपा और एनडीए गठबंधन ने इस ‘इलाज’ शब्द को लोगों के लिए एक खतरे के रूप में प्रचारित किया। उन्होंने इसे 1990 के दशक के ‘जंगल राज’ की भाषा के रूप में व्याख्यायित किया और इसे बढ़ावा दिया।
इसका सीधा फायदा एनडीए गठबंधन को हुआ। खासकर मतदाताओं के अन्य वर्गों में ‘जंगल राज’ की वापसी का डर प्रबल हो गया, जिसने उन्हें एनडीए के पक्ष में मतदान करने के लिए प्रेरित किया।
*राहुल गांधी और कांग्रेस का बिहार में निराशाजनक प्रदर्शन:*
इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को मात्र एक अंक की सीटों से ही संतोष करना पड़ा। इससे तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन को सीधा नुकसान हुआ है।
कांग्रेस का यह खराब प्रदर्शन कोई नई बात नहीं है, यह 2020 के चुनावों से ही एक चलन रहा है। 2020 में कांग्रेस ने कुल 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे केवल 19 सीटों पर ही जीत मिली थी।
इस बार भी कांग्रेस अपना प्रदर्शन नहीं सुधार पाई। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ शुरू की। उन्होंने मतदाताओं से मिलने और उनके अधिकारों की बात करने की कोशिश की।
इसके अलावा, राहुल गांधी ने चुनावों के दौरान बार-बार “वोट चोरी” के गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की माँ का भी अपमान किया, जिससे बिहार की जनता नाराज़ हो गई और चुनावों में उसे करारी हार का सामना करना पड़ा।







