उप सम्पादक जीत बहादुर चौधरी की रिपोर्ट
15/11/2025
काठमाण्डौ,नेपाल – प्रशांत किशोर (पीके) 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद से भारत के विभिन्न राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में कई दिग्गज नेताओं के लिए अहम चुनावी रणनीतिकार रहे हैं।
पीके जिस नेता के साथ खड़े होते है, उसे चुनाव जिताने का उनका ‘स्ट्राइक रेट’ 100 प्रतिशत रहा। 2014 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने से लेकर 2020 के बिहार चुनावों में तेजस्वी यादव की राजद को मज़बूत करने और 2021 में बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को सत्ता में लाने तक, पीके की चुनावी रणनीति हमेशा चर्चा में रही है।
कुछ ही समय में प्रशांत किशोर पीके के नाम से मशहूर हो गए। उनकी गिनती भारत के प्रमुख चुनावी रणनीतिकारों में होने लगी। हालाँकि, जब वे खुद 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी बनाकर मैदान में उतरे, तो पीके की जनसुराज पार्टी (जेएसयूपी) एक भी सीट नहीं जीत पाई।
इतना ही नहीं, ज़्यादातर सीटों पर जेएसयूपीए उम्मीदवारों की ज़मानत भी नहीं बच पाई। दूसरे शब्दों में, दूसरों को चुनाव जिताने वाले प्रशांत बिहार की राजनीति में ‘किशोर’ साबित हुए।
*प्रशांत किशोर कहाँ चूक गए?*
पीके और उनकी पार्टी की हार न सिर्फ़ उनकी भविष्यवाणियों को झूठा साबित कर रही है, बल्कि सोशल मीडिया पर उन्हें ‘किशोर’ यानी राजनीति में अपरिपक्व साबित किया जा रहा है।
प्रशांत किशोर का सफ़र अनोखा है। आईआईटी कानपुर से स्नातक और संयुक्त राष्ट्र में कार्यरत, प्रशांत किशोर ने 2011 में अन्ना हज़ारे के आंदोलन के ज़रिए राजनीतिक रणनीति की दुनिया में कदम रखा।
उन्होंने 2012 के गुजरात चुनावों में नरेंद्र मोदी के लिए काम किया। उनके ‘चाय पर चर्चा’ अभियान ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को 182 सीटें जीतने में मदद की।
पीके 2014 के लोकसभा चुनावों में भी मोदी के साथ रहे। उस समय उनका प्रचार अभियान राष्ट्रीय स्तर पर चला। प्रशांत किशोर की ‘सिटीजन्स फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस’ (CAG) ने ‘डेटा एनालिटिक्स’ और ‘ज़मीनी स्तर के अभियान’ के ज़रिए कमाल कर दिया।
हालाँकि, जब प्रशांत किशोर ख़ुद बिहार के चुनावी मैदान में उतरे, तो वे मैदान का सही आकलन नहीं कर पाए, जिसके कारण उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
*चुनावी रणनीतिकार*
2014 में भारतीय प्रधानमंत्री मोदी को सत्ता के शिखर पर पहुँचाने के बाद, प्रशांत किशोर ने 2015 के बिहार चुनावों में नीतीश-लालू गठबंधन के लिए काम किया। उस समय, वे महागठबंधन को जीत दिलाने में सफल रहे।
हालाँकि, 2017 में नीतीश कुमार से मतभेद के बाद, प्रशांत किशोर ने ‘इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी’ (IPAC) की स्थापना की। IPAC के बैनर तले, उन्होंने 2019 में आंध्र प्रदेश में युवजन श्रमिक रायथू कांग्रेस पार्टी (YSRCP) को सत्ता में लाया और जगन मोहन रेड्डी को मुख्यमंत्री बनाया।
प्रशांत किशोर ने ममता बनर्जी के लिए ‘घर-घर तृणमूल’ अभियान चलाकर 2021 में पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (TMC) को 213 सीटें दिलाईं। उसी वर्ष, उन्हें बिहार उपचुनाव में तेजस्वी यादव की पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के खिलाफ करारी हार का सामना करना पड़ा।
*घर-घर जाकर प्रचार और सोशल मीडिया पर भरोसा*
इस बार, प्रशांत किशोर ग्रामीण स्तर पर घर-घर जाकर प्रचार और सोशल मीडिया के इस्तेमाल से बिहार में मतदाताओं को आकर्षित करने के प्रति आश्वस्त थे।
विधानसभा चुनाव लड़ने से पहले, उन्होंने 2022 में ‘जन सुराज’ अभियान शुरू किया था। यह अभियान शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार और पलायन जैसे मुद्दों पर केंद्रित था। प्रशांत किशोर ने अक्टूबर 2024 में इस अभियान को एक पार्टी में बदल दिया।
पार्टी बनाते समय, पीके ने घोषणा की थी कि वह 2025 के चुनावों में बिहार की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। चुनाव की घोषणा के दौरान, उन्होंने कई दावे भी किए।
प्रशांत किशोर ने दावा किया कि नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) 25 से ज़्यादा सीटें नहीं जीत पाएगी और आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन भी कमज़ोर हो जाएगा, जबकि जन सुराज पार्टी 75 से ज़्यादा सीटें जीतकर बिहार की राजनीति में बदलाव लाएगी।
जन सुराज पार्टी ने बिहार की 234 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। प्रशांत किशोर खुद बक्सर विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बने। 14 नवंबर को जब चुनाव परिणाम आए, तो वह राजनीतिक रूप से ‘किशोर’ साबित हुए।
पीके की पार्टी कहीं भी खाता भी नहीं खोल पाई। ज़्यादातर उम्मीदवारों को 10 प्रतिशत से भी कम वोट मिले। यानी उनकी ज़मानत ज़ब्त हो गई। चुनाव नतीजों ने पीके की रणनीति को गहरा झटका दिया। बिहार विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद प्रशांत किशोर ने कहा, “यह तो बस शुरुआत है, हम सीखेंगे।”







